जो शहीदों की चिताओं पे चढ़ा होता है
ग़ज़ल
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उसका जीवन में नहीं कोई भला होता है
जिसको माँ-बाप का साया न मिला होता है
छोड़ कर तन्हा सफ़र बीच चले जाना ही
क्या यही बोलो सनम अहदे-वफ़ा होता है
मंजिलें उसको ही हासिल हैं जहां में यारों
एक पाँ ज़ानिबे मंजिल जो चला होता है
इस भरी दुनिया में खुद को न समझ तू तन्हा
जिसका कोई भी नहीं उसका खुदा होता है
फूल किस्मत को तभी अपने समझता अच्छा
जो शहीदों की चिताओं पे चढ़ा होता है
हम यकीं तेरी वफ़ाओं पे करें तो कैसे
तेरी फ़ितरत में मिला रंगे-जफ़ा होता है
दाग़ दामन में हजारों ही लगाए तुमने
याद करता हूँ तो हर जख़्म हरा होता है
कुछ सबक़ सीख चमन के खड़े दरख़्तों से
फूल फल पाके भी वो कैसे झुका होता है
हँसता महफिल में वही खूब समझ लो “प्रीतम”
जिसके सीने में कोई दर्द छुपा होता है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
16/09/2017
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