जो भूल गये हैं
जो गये हैं भूल..
जो गये हैं भूल अपने साज़ उनको क्या कहें।
बेच बैठे हैं यहाँ आवाज़ उनको क्या कहें।।
हैं यहाँ दुश्मन सियासी खाल को पहने हुए,
मानते हैं लोग जो सरताज उनको क्या कहें।
कर रहे रक्षा वतन की हो खड़े सागर शिला,
दुश्मनों को दे रहे जो राज़ उनको क्या कहें।
आजतक समझे नहीं हैं वो महत्ता स्वंय की,
कर विदेशों पर रहे जो नाज़ उनको क्या कहें।
गर्व से ऊँचा सभी का शीश हो कुछ यूँ करो,
हो गये हैं स्वंय जो मुहताज उनको क्या कहें।
शर्म से नज़रे झुका लेते जिसे हम देखकर,
कह रहे हैं जो नया अंदाज़ उनको क्या कहें।
सामने है आ रहा इतिहास ‘राही’ जब सही,
व्यर्थ में जो हो रहे नाराज़ उनको क्या कहें।
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’
(बस्ती उ. प्र.)