जो बेटी गर्भ में सोई…
जो बेटी गर्भ में सोई न सूरज देख पाई है
उसे भी मार देता आदमी कितना कसाई है
उदर में पालती है फिर उदर को दूध से भरती
चले यह सृष्टि यूँ ही इसलिए हर यत्न है करती
धरा पर कष्ट सह कर जो सभी को ले के आई है
उसे भी मार देता आदमी कितना कसाई है
यहाँ नारी किसी मंदिर में पूजी रोज है जाती
वही जब गर्भ में आये तो श्रद्धा क्यूँ नहीं आती
क्यूँ पत्थर पूज्य है लेकिन बनी बिटिया पराई है
उसे भी मार देता आदमी कितना कसाई है
न पूरे हो सकेंगे हाय सपने सात रंगों के
मिले आशीष उसको हैं भले ही सात पुरखों के
भले ही जिस्म अपना सात परतों में छुपाई है
उसे भी मार देता आदमी कितना कसाई है
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 07/03/2023