जो बीत गया सो बीत गया
जो बीत गया सो बीत गया,
कुछ खोना है कुछ पाना है,
जो पाया उसका हर्ष ना कर,
जो खोया नहीं पछताना है।
जब हम जिन्दगी में आते हैैं,
मोह-माया में पड़ जाते हैं,
जो जिन्दगी को जान पाते हैं,
वो कभी शोक नहीं मनाते हैं।
जिन्दगी का एक अलग मंत्र है,
जो बीत गया है उसे बिसार दे,
जो आ रहा है तू स्वागत कर,
आने वाले का जीवन संवार दे।
पतझड़ के मौसम में पादप भी,
धैर्य रख तनिक नहीं घबराते हैं,
नये-नये कोपल बसंत ऋतु में,
करके नव श्रृंगार सजाते हैं।
ये ज़िन्दगी तो एक रैन बसेरा है,
जम ना पाया किसी का डेरा है,
जो बीता वो जीवन का शाम है,
आने वाला जीवन का सवेरा है।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार ©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
जमशेदपुर, झारखण्ड।