जो प्यार होता नहीं ज़िन्दगी नहीं होती
जो प्यार होता नहीं ज़िन्दगी नहीं होती
बहार आती नहीं ताज़गी नहीं होती
मगर मैं समझा नहीं आजतक मोहब्बत क्यूँ
कभी नसीब में होती कभी नहीं होती
अगर दुआ न मेरे सर पे माँ की होती तो
ख़ुशी भी कोई मुझे फिर मिली नहीं होती
सफ़र में मुझको ठहरना कहीं नहीं पड़ता
अगर ज़मीन वहाँ दलदली नहीं होती
कोई भी बात न करता कभी मुहब्बत से
मेरी ज़ुबाँ में अगर चाशनी नहीं होती
मैं तीरगी में भटकता न जाने कब तक फिर
अगरचे राह में वो रोशनी नहीं होती
समझ समझ के ही ‘आनन्द’ आज समझा है
भले न ख़ुद हो तो दुनिया भली नहीं होती
~ डॉ आनन्द किशोर