” जो पाया गह जाते हैं ” !!
आश्वासन लगते हैं मीठे , पेट नहीं भर पाते हैं !
इक गरीब के चौके चूल्हे , सूने ही रह जाते हैं !!
रोजगार हाथों में ना है , हाथों में था छूट गया !
सपनीली आँखों ने जाना , भ्रम पाला था टूट गया !
भूख सदा आकुल करती है , फिर भी हम सह जाते हैं !
अश्रुकणों को कौन समेटता , बहना है बह जाते हैं !!
हार कहाँ मानी है हमने , अपनी प्रीत निराली है !
मेहनत सदा हृदय बसी है , बाँहें मछली वाली हैं !!
खरा खरा हम बोला करते , खरी खरी कह जाते हैं !
सपने ना हैं रैन बसेरा , वो तो बस ढह जाते हैं !!
धन संचय हम नहीं जानते , मुट्ठी रहती है खाली !
पेट कभी ना हमने कूटा , मुस्कानें हमने ढाली !!
उम्मीदें हैं राह जगाती , चमकीली तह पाते हैं !
हमें भाग्य से नहीं शिकायत , जो पाया गह जाते हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )