जो तुम्हारी ख़ामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाजा न कर सके उसक
जो तुम्हारी ख़ामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाजा न कर सके उसके सामने तकलीफ़ को बयान करना लफ़्ज़ों को जाया करना है – हजरत अली
जो तुम्हारी ख़ामोशी से तुम्हारी तकलीफ का अंदाजा न कर सके उसके सामने तकलीफ़ को बयान करना लफ़्ज़ों को जाया करना है – हजरत अली