जो झेलते हैं
जो झेलते हैं,वो जानते हैं,
हकीकत को पहचानते हैं,
कर्मठ हैं जो जीवन में,
खाक वही तो छानते हैं|
सुलग रहा भीतर भीतर
लावा सा उफान पे है,
बिगड़ते जाते हैं हालात,
चाहे जितना हम ठानते हैं|
✍हेमा तिवारी भट्ट✍
जो झेलते हैं,वो जानते हैं,
हकीकत को पहचानते हैं,
कर्मठ हैं जो जीवन में,
खाक वही तो छानते हैं|
सुलग रहा भीतर भीतर
लावा सा उफान पे है,
बिगड़ते जाते हैं हालात,
चाहे जितना हम ठानते हैं|
✍हेमा तिवारी भट्ट✍