जो जलता है जलने दीजिए
जो जलता है जलने दीजिए
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जो जलता हैं जलने दीजिए,
पर हद में न गुजरने दीजिए|
दर पर आए जो कोई गुहारी,
दिल उसका न दुखने दीजिए|
जो कुछ सी हो मिल बांटिए,
तनिक भूखा न मरने दीजिए|
मन में जो भी है झट परखिए,
दो दूनी चार न करने दीजिए|
मुट्ठियां भर-भर बांटों खैरात,
हाथों को न मसलने दीजिए|
पलभर भी न रोको मनसीरत,
खुल कर उन्हें टहलने दीजिए|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)