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12 Jul 2024 · 1 min read

जो चाहते थे पा के भी तुम्हारा दिल खुशी नहीं।

गज़ल

1212/1212/1212/1212
जो चाहते थे पा के भी तुम्हारा दिल खुशी नहीं।
ये जिंदगी है इसमें कोई खुश हुआ कभी नहीं।

ये हक नहीं उसे कि देश का वो कर्णधार हो,
गरीब मुफ़लिसों की बात जिसने है सुनी नहीं।

उसे चुना नहीं था या कि छल फरेब था कोई,
जिसे बनाया बाम अंग वो तुझे जमी नहीं।

जो लोग डूब जाऍं इश्क में वही मुफ़ीद हैं,
वो कैसे प्यार कर सकेंगे जिनमें बेखुदी नहीं।

जनम लिया पले बड़े जिए मगर ये क्या हुआ,
हैं बदनसीब देश की जमीं जिन्हें मिली नहीं।

ये देश का नशा है जिसके सिर चढ़ा वो जानता,
तमाम ‘प्रेमी’ देश पर फिदा हुए हमी नहीं।

……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी

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