जो ग़ुरूर में अकड़ जाते हैं
जो अपने गुरूर में अकड़ जाते हैं
वो एक दिन जड़ से उखड़ जाते हैं।
थोड़ी तल्ख़ी भी ज़रूरी है मिजाज में
ज़्यादा मीठे फल जल्दी सड़ जाते हैं।
यह शक ओ शुब्हा आतिश से कम नहीं
बसे बसाये घर पल में उजड़ जाते हैं।
यूँ किसी का ग़म कम तो नही होता मगर
कोई शाने पे हाथ रखे तो हौंसले बढ़ जाते हैं
मोहब्बत के साथ नसीहत भी ज़रूरी है
ज़्यादा लाड़ प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं।
कोई मुश्किल उन्हें रूला नहीं पाती ‘अर्श’
जो हर एक मुश्किल से हँस के लड़ जाते हैं।