जो खुद ही पहले हमें जख़्म दे के जाते है।
गज़ल
1212……1122……1212……22
जो खुद ही पहले हमें जख्म दे के जाते हैं।
वही हैं आ के जो मरहम हमें लगाते हैं।
वो जानते हैं हमें कितना वो सताते हैं।
हमीं हैं जो कि वफ़ाएं निभाए जाते हैं।
न जोर जोर से धड़के किसी का दिल यारो,
इसीलिए तो उन्हें दर्दे दिल सताते है।
किया है मार के घायल उन्हीं ने खंजर से,
जो आके प्यार से हमको गले लगाते हैं।
वो जब भी प्यार की मस्ती में हमसे मिलते हैं,
खुशी से फिर तो वो बाहों मे झूल जाते हैं।
बड़े बड़ो की ये बातें हैं छोड़िए साहब,
किसी को एक निवाला नहीं खिलाते हैं।
खुदाया उनको भी थोड़ी सी अदमियत देना,
जमीं जो स्वर्ग है दोजख़ बनाये जाते हैं।
तुम्हें न दर्द हो ‘प्रेमी’ जिगर के जख्मों से,
इसी लिए तो सदा जख्म हम छुपाते है।
…….✍️ प्रेमी