जो खुद गुलाब है उसे मैं क्या गुलाब दूँ
क्या इश्क़ में तुमको बता तोहफ़ा जनाब दूँ।
जो खुद ग़ुलाब है उसे मैं क्या गुलाब दूँ।
तुम मुस्कराई ज्यों लगा चटकी कहीं कली।
गोरा बदन निहारा ज्यों हो चाँदनी खिली।
है रूप तुम्हारा की आई स्वर्ग से परी,
गुजरी हो तुम जहां से वो महकी है हर गली।
सब पुँछते हैं राज ए रूप, क्या जबाब दूँ।
जो खुद ग़ुलाब है उसे मैं क्या गुलाब दूँ।
कितने दीवाने आपके गालों पे मर मिटे।
कुछ तो तुम्हारी हिरनी सी चालों पे मर मिटे।
जो रह गए हैं इश्क़ में अनजान दीवाने,
वो सोचकर के ख़्वाब खयालों पे मर मिटे।
कितने बने मुरीद हैं क्या क्या हिसाब दूँ।
जो खुद ग़ुलाब है उसे मैं क्या गुलाब दूँ।
अभिनव मिश्र अदम्य