जो कहे इक चाँद बनाया खुदा ने
जो कहे इक चाँद बनाया खुदा ने,
ये उनकी नज़र का धोका है
इक चाँद तो अपने मुहल्ले से,
मैंने रोज़ निकलते देखा है
लूट लिया है चैन जिया का,
और ज़ख़्म दिए हैं बहुतेरे
यूँ सबको ही अक्सर धोके में,
रखते हैं ये हंसीं चेहरे
यूँ ग़म में डूबे आशिक़ को,
सब ने खूब तड़पते देखा है
घात लगाए शिकार करे वो,
यूँ फँसे हैं कई दीवाने
जैसे चराग़ जले महफ़िल में
जल जाते खुद ही परवाने
अब कोई बचेगा न यारो,
ये जाल हसीनों ने फेंका है
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