जो कहना है खुल के कह दे….
सौ किस्से हैं मिलते-जुलते
एक मज़बूरी ठीक नहीं,
जो कहना है खुल के कह दे
यूँ बात अधूरी ठीक नहीं….
कोई हल कोई बहाना
कोई मुंसिब राह निकाल,
मुझसे ऐसे मिलते रहना
ग़ैर ज़रूरी ठीक नहीं…..
रोज़ मोहब्बत हो जाती है
चलते-फिरते लोंगों से,
गीत अधूरे ख़्वाब अधूरे
ये मज़दूरी ठीक नहीं…..
एक शिकस्त के बदले मुझको
सब-के-सब ईल्ज़ाम न दे,
कुछ-कुछ तेरी सच हैं बातें
लेकिन पूरी ठीक नहीं……
हर महफ़िल में आए जब
वो पीछे जाके बैठ गए,
हमसे दूरी अच्छी है पर यूँ
इतनी दूरी ठीक नहीं… ✍️..