महाकाल
जो अधीन नहि काल के , हैं वही महाकाल
कालातीत उसे कहें , जो वास्तव त्रिकाल ||
रूप भयंकर विकराल सजे, शस्त्र मौत का पाश
नव सिरजन जिसमें छिपा, दिखता है सब नाश ||
काल को जो बांध सके, महाकाल कहलाय
काल पाश मानव रहे, कैसे भेद बताय ||
चमक दमक लिपसा रहित, जीवन हो अध्याय
शांति रुदन सब झूलता, ये सिरजन पर्याय ||
मोह माया विहीन जो , करे सदा कल्याण
राजा रंक फ़क़ीर का , सबको मौत समान ||
मनुज हुआ है बाबरा, डूबा भोग विलास
धन दौलत की मार से, बेहद हुआ विनाश ||