जोश से क्रांति नही लड़ी जाती
जोश और जत्था से क्रांति नही लड़ी जाती साहेब , गरीबी युक्त भूखे पेट से , अब लोकतंत्र की परिभाषा नही गढ़ी जाती ।
कतरे कतरे तन गए , भुखमरी में
अश्रु की गंगा हिलोरे मारती है , अब हमसे ना होगा साहेब , अब बसन्त भी गयी पतझड़ का सबेरा हैं , ना भाई ना अब कोई परिभाषा ना ।
समाजवाद भी रूठी ,साम्यवाद का ताना हैं , भैया हो काका हो अब न होगा लोकतंत्र की चर्चा ।