जोश और जज़्बात
जोश और जज़्बात नारों में बहुत तेरे है दोस्त।
कुछ न बदले,नारों से ज्वाला निकलना चाहिए।
राष्ट्रभक्ति की हमें भाषण सुनाये तुमने बहुत।
अब तो तेरे कर्म से ऐसा ही लगना चाहिए।
टूटकर पत्थर कभी खुद से बनेगा कुछ नहीं।
आदमी के हाथ में एक औजार होना चाहिए।
राजधर्मा-नृप सिंहासन त्याग प्रजा है आ गई।
शासितों को ही शासनाधिकार होना चाहिए।
दु:ख समुन्दर है उसे कर पार पाना है कठिन।
समय के साथ शासन को नहीं प्रतिकूल होना चाहिए।
हाँ गुजर जाने हित हम सब आए तो हैं जरूर!
जाते-जाते रास्तों पे दीयों के गीत गाने चाहिये.
देश को अपना समझता मांगता न मुल्क एक.
हर घृणा की उपज को हाँ ग्रहण लगना चाहिए.
जिन्दगी है भंवर इसमें फंस गये हम क्या करें.
जन्म को कोसें न, इसमें तैर जाना चाहिए.
आज के इतिहास को साक्षी बनाने के लिए.
आदमी न भूत-प्रेतों को कथायें सौंप जाना चाहिए.
गर्व हर सौन्दर्य और ऐश्वर्य का प्रण,प्राण है.
प्राण,प्रण खंडित हुआ यह जान लेना चाहिए.
पीर जितनी भी बड़ी हो प्रण से हारी है सदा.
प्राण में प्रण गूँथकर साहस दिखाना चाहिए.
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