जोरूं का गुलाम
उस दिन आईसीसीयू में मैं अपने प्रातः कालीन राउंड के समय जब उस 93 वर्षीय वृद्ध के पास उसको देखने के लिए पहुंचा तो वह बिस्तर पर कान में जनेऊ लपेटे उकड़ूं बैठा था उसके हाथ में एक पीतल का लोटा था उसकी इस मुद्रा से मैं समझ गया कि वो अभी अभी दीर्घशंका से निवर्त होने शौचालय तक चल कर गया था । वह हृदय आघात से पीड़ित हो कर दो दिन पहले भर्ती हुआ था और उसे पूर्ण रूप से बिस्तर पर लेट कर आराम करने की सलाह दी गयी थी । मैं जानता था कि अधिकतर ससंस्कारी भारतीय लोग हृदयाघात होने के पश्चात भी पैन में पाखाना फिरना नहीं पसंद करते हैं और बिस्तर छोड़ कर चल कर शौचालय चले जाते हैं यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें कि जान का खतरा होता है अतः मैंने उससे कहा कि आपने बिस्तर क्यों छोड़ा क्यों पैदल चले वह बहुत ही कमजोर हालत में वैसे ही सिर झुकाए मुझे अनसुना करते हुए बैठा रहा तथा उसने कोई उत्तर नहीं दिया । फिर मैंने उसका ब्लड प्रेशर देखा जो कि 90 / 60 था ।अब मैंने उसके पास बराबर में खड़ी उसकी पत्नी जो करीब 90 साल की रही होगी को नाज़ुक स्थिति स्पष्ट करते हुए समझाया कि देखो इन्हें पूरा आराम करने दो चलेंगे फिरेंगे तो जान का खतरा है । यह बात उस जमाने की है जब इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी ( एंजियोग्राफी , एंजियोप्लास्टी ) का इतना ज्यादा उपयोग नहीं था तथा दवाएं लेते हुए कुछ हफ्ते आराम करना ही ऐसे मरीजों का इलाज होता था । उसको इस प्रकार से देख कर जब मैं चलने लगा तो उसकी पत्नी ने अपनी बारीक सी हल्की मिमियाती आवाज में पूछा डॉक्टर साहब इनका कोई परहेज ?
इससे पहले कि मैं कुछ कहता उस बुड्ढे ने भरपूर क्रोध में भर कर चिल्लाते हुए ,अपने शरीर की सारी मांसपेशियों तक का जोर लगते हाथ में पकड़े हुए लोटे को हवा में लहराते हुए अपनी पत्नी को संबोधित करते हुए लगभग चीख़ते हुए कहा –
‘ तू चुप रह ज्यादा बकबक करेगी तो यही लोटा फेंक के मारूंगा यह सब तेरी वजह से ही हुआ है । ‘
मैंने उसे शान्त रहने का इशारा करते हुए धीरे से समझाया मुलायम खिचड़ी दे देना और उस वृद्ध पर अपनी पत्नी के ऊपर चीखने चिल्लाने और गुस्सा करने का क्या प्रभाव हुआ होगा यह देखने के लिए मैंने उसका ब्लड प्रेशर दोबारा नापा तो पत्नी को संबोधित करने के बाद अपने आप ठीक हो कर 120/ 70 पर पहुंच गया ।जो कमज़ोरी तमाम दवाइयों के बावज़ूद नहीं दूर हो रही थी उससे ज़्यादा शक्ति का संचार पत्नी के एक वाक्य ने कर दिखाया ।वह उसके शिवत्व की शक्ति स्वरूपा शान्त , स्थिर , बिना कोई प्रतिवाद किये दीवार से टेक लगाये खड़ी रही और उस समय मैं उनके कक्ष से बाहर आ गया ।
उसी दिन शाम को अचानक उसकी स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई थी । उसे मल्टी पैरा मॉनिटरिंग पर निगरानी के लिए लगा दिया गया था । मैं आई सी सी यू में बैठे-बैठे उसके साथ ही अन्य मरीजों की भी स्थितिपर निगरानी रख रहा था ।मैंने देखा अचानक उसकी धड़कन परिवर्तित होने लगी उसे वीटी ( अनियंत्रित घड़कन ) हो गया और वह एकदम से बेहोशी और हार्ट फेलियर में चला गया था । मैं उसके पास गया उसे बिजली का झटका (df ) दिया उसकी धड़कन सामान्य होने लगी वह ठीक होने लगा लेकिन पूरी तरह से होश में नहीं आया था ।उसकी पत्नी उसके बिस्तर के पास शांत बैठी हुई गतिविधियों को देख रही थी । मैं वहीं बैठा ही था की उसे उसी तरह का आघात फिर पड़ा और वह बेहोशी में चला गया मैंने उसको फिर उसी तरह से ईलाज दिया और उसमें कुछ सुधार हो गया । घंटे भर में करीब चार – पांच बार उसकी ऐसी ही हालत डोलती रही। पास के स्टूल पर बैठी उसकी पत्नी यह सब देख रही थी । इस बार फिर जब उसकी हालत गड़बड़ाई और वह तड़पने लगा उसकी सांस बन्द होने लगी तो मैं लपक के उसके पास गया और हताश भाव से उसके उसकी छाती पर आला लगाकर उसकी धड़कन सुनने लगा कुछ ही क्षण बीतने पर मुझे उसकी पत्नी की आवाज आले से आती ह्रदय की लबडब की ध्वनि को भेदती हुई सुनाई दी ।
वह अपने पति के कान के पास अपना मुँह ले जा जाकर कह रही थी
‘ क्यों प्राण नहीं निकल रहे हैं ,क्या बात है हमारी चिंता कर रहे हो ? तुम हमारी चिंता मत करो अब तुम जाओ हमारी चिंता मत करो ।’
और आश्चर्यजनक रूप से उसके उसकी पत्नी के इस वाक्य के समाप्त होते ही मुझे आले में उसकी लब डब धड़कन की आवाज़ आनी बंद हो गई तथा कार्डियक मॉनिटर पर ह्रदय गति की रेखा सीधी हो गई ।
अब मैंसोचता हूं यह कैसा रिश्ता है जो प्रत्यक्ष में कभी – कभी आपस मे एक शब्द नहीं सहन कर पाता पर कहीं दूर मन की असीम गहराइयों में एक दूसरे से इतना जुड़ा रहता है । वह बहुत बड़ा जोरू का गुलाम रहा होगा तभी तो बिना अपनी पत्नी की सहमति एवम अनुमती लिए इस लोक से विदा लेने को तैयार नहीं था ।