जोग और भोग
जोग और भोग
एक राजा ने विद्वान ज्योतिषियों और ज्योतिष प्रेमियों की सभा बुलाकर प्रश्न किया “मेरी जन्म पत्रिका के अनुसार मेरा राजा बनने का योग था मैं राजा बना,किन्तु उसी घड़ी मुहूर्त में अनेक जातकों ने जन्म लिया होगा जो राजा नहीं बन सके क्यों ?
राजा के इस परसन से सब निरुत्तर हो गये क्या जबाब दें कि
एक ही घड़ी मुहूर्त में जन्म लेने पर भी……
सबके भाग्य अलग अलग क्यों हैं?
अचानक एक वृद्ध खड़े हुये और बोले, “आप यहाँ से कुछ दूर घने जंगल में जाएँ तो वहां आपको एक महात्मा मिलेंगे उनसे आपको इस प्रश्न का उत्तर मिल सकता है।”
राजा जी की जिज्ञासा बढ़ी।
घोर जंगल में जाकर देखा एक महात्मा आग के ढेर के पास बैठ कर अंगार (गरमा गरम कोयला ) खाने में व्यस्त हैं।
सहमे हुए राजा ने महात्मा से जैसे ही प्रश्न पूछा महात्मा ने क्रोधित होकर बोले,……
“तेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं है मैं भूख से पीड़ित हूँ। तेरे प्रश्न का उत्तर यहां से कुछ आगे पहाड़ियों के बीच एक और महात्मा हैं,वे दे सकते हैं।”
राजा जी की जिज्ञासा और बढ़ गयी, पुनः अंधकार और पहाड़ी मार्ग पार कर बड़ी मुश्किल से राजा दूसरे महात्मा के पास पहुंचा।
किन्तु यह क्या……
महात्मा को देखकर राजा हक्का बक्का?? रह गया, दृश्य ही कुछ ऐसा था।
ये महात्मा जी अपना ही माँस चिमटे से नोच कर खा रहे थे।
राजा को देखते ही महात्मा ने भी डांटते हुए कहा ” मैं भूख से बेचैन हूँ मेरे पास इतना समय नहीं है,आगे जाओ पहाड़ियों के उस पार एक आदिवासी गाँव में एक बालक जन्म लेने वाला है ,जो कुछ ही देर तक जिन्दा रहेगा सूर्योदय से पूर्व वहाँ पहुँचो वह बालक तेरे प्रश्न का उत्तर का दे सकता है।”
सुन कर राजा जी बहुत बेचैन हुए।
सोचने लगे,”बड़ी अजब पहेली बन गया मेरा प्रश्न, (उत्सुकता प्रबल थी)। कुछ भी हो यहाँ तक पहुँच चुका हूँ वहाँ भी जाकर देखता हूँ क्या होता है?”
कठिन मार्ग पार कर किसी तरह प्रातः होने तक राजा जी गाँव पँहुचे, पूछताछ की, और उस दंपति के घर पहुंचकर सारी बात कही जन्म लेते ही नवजात को लाने हेतु निवेदन किया।
जैसे ही बच्चा हुआ दम्पत्ति ने नाल सहित बालक राजा के सम्मुख उपस्थित किया राजा को देखते ही बालक ने हँसते हुए कहा,
“राजन् ! मेरे पास भी समय नहीं है,किन्तु अपना उत्तर सुनो लो…..
तुम,मैं और दोनों महात्मा सात जन्म पहले चारों भाई व राजकुमार थे,एकबार शिकार खेलते खेलते हम जंगल में भटक गए। तीन दिन तक भूखे प्यासे भटकते रहे ।
अचानक हम चारों भाइयों को आटे की एक पोटली मिली जैसे तैसे हमने चार बाटी सेकीं और अपनी अपनी बाटी लेकर खाने बैठे ही थे कि…
भूख प्यास से तड़पते हुए एक महात्मा आ गये । अंगार खाने वाले भइया से उन्होंने कहा,”बेटा मैं दस दिन से भूखा हूँ अपनी बाटी में से मुझे भी कुछ दे दो, मुझ पर दया करो जिससे मेरा भी जीवन बच जाय, इस घोर जंगल से पार निकलने की मुझमें भी कुछ सामर्थ्य आ जायेगी”
इतना सुनते ही भइया गुस्से से भड़क उठे और बोले “तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या आग खाऊंगा ? चलो भागो यहां से।”
वे महात्मा जी फिर मांस खाने वाले भइया के निकट आये उनसे भी अपनी बात कही किन्तु उन भइया ने भी महात्मा से गुस्से में आकर कहा कि “बड़ी मुश्किल से प्राप्त यह बाटी तुम्हें दे दूंगा तो मैं क्या अपना मांस नोचकर खाऊंगा ?“