” जोखिम भरी ज़िन्दगी “
जीवन की विडंबना है यही, ये बडती ही चलेगी,
बढोगे जितना प्रयास कर, सफल करती चलेगी ||
रुक जाओगे थककर, तो सिलसिला थम चलेगा,
साँसे भर गर धक्का लगा दिये तो गाडी बडती चलेगी ||
जाने कितने मुसाफ़िर आये और लौटकर मुड चले ,
इतिहास तो वो बनाये जो जोखिमों को गले लगाते चले ||
कद्र और तारीफ़ तो केवल असरदार की होगी,
यूं ही सफर सुहाना समझने वालों को मुनासिब न होगी ||
दौड़ है तो दौड़ दौड़कर ही पूरी करनी पड़ेगी,
तासीर गर चाह है तो मुफलिसी सहनी पड़ेगी ||
तासीर**इज्ज़त, सम्मान
मुफलिसी**तकलीफ, परेशानी,
—-अशोक डंगवाल “आशु “