【जैसे शशि से, विलग न होती, तेजस्वी चाँदनी】
अधखुली झोली,
दीखतीं रश्मियाँ,
तेज की, ज्ञान की,
वही तेज,जिससे,
प्रकाशित साधक की,
साधना, कल्पना,
कल्पना में एक ही,
अड़िग उद्देश्य जो,
प्रदर्शन करता है,
कभी न रुकने का,
कभी न झुकने का
सूक्ष्म दृष्टि से,
सूक्ष्म दृष्टा बनकर
अजेय बनकर,
अज्ञेय बनकर
ज्ञेय के साथ,
ज्ञान की प्राप्ति के,
महत्व के लिए,
मुड़े हाथों से,
दासत्व के साथ,
रुकना नहीं कभी
तू अमर है,
हाँ भटकना कोई,
भटकना नहीं,
तू सत्य है,
तू द्वन्दरहित है,
तू मति का सेवक है,
फिर लक्ष्य क्या है,
तेरे द्वारा निर्मित,
कौशल दिखा,
लटक जा,
उसकी भुजा पकड़कर,
कैसे नहीं मिलेगा,
कुरेद दे उस,
सम्पूर्ण झोली को,
जो बरसाती है,
नित नई रश्मियाँ,
खोज अपनी उसी
एकरंगी रश्मि को,
समा जा, समा जा,
हाँ समा जा,
जिसे तू खोज रहा है,
अदम्य साहस से,
लगे रहना उसकी,
प्राप्ति तक,
जैसे शशि से,
विलग न होती,
तेजस्वी चाँदनी,
सतत चेष्टा कर,
आञ्जनेय के,
बल की,
पराक्रम की,
संशय रहित होकर।
©अभिषेक पाराशर??????