जैसे चलती है रहगुज़र तन्हा
जैसे चलती है रहगुज़र तन्हा
ज़िन्दगी का है ये सफ़र तन्हा
जीते जी मर ही जायेंगे हम तो
छोड़ तुमने दिया अगर तन्हा
जिसको आना था वो नहीं आया
कर गई हम को ये ख़बर तन्हा
कर दिया वक़्त ने जुदा क्यों रब
हम इधर और वो उधर तन्हा
लोग चलते हैं रात दिन इस पर
फिर भी कितनी है ये डगर तन्हा
ज़िन्दगी सिलसिला है मेलों का
आना – जाना तो है मगर तन्हा
चाहिए ज़िन्दगी में अपने भी
वर्ना कटता नहीं सफ़र तन्हा
डूब जाते हैं जो अकेले हैं
पार होती नहीं भँवर तन्हा
जो थे अपने हुए पराये सब
हो गये छू के हम शिखर तन्हा
अश्क़ पीती कभी बहाती दिखी
“अर्चना” हम को हर नज़र तन्हा
डॉ अर्चना गुप्ता