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3 Feb 2023 · 1 min read

जे जाड़े की रातें (बुंदेली गीत)

हमखों लगें
गुरीरीं भौतऊ,
जे जाड़े की रातें ।

चार जनौं ने
बारो कौंड़ौ,
बैठे आगी तापें,
क्याऊँ की ईंट
क्याऊँ कौ गारौ
बैठे राग अलापें ।

सुक्क-दुक्ख कीं
राजनीत कीं
धरम-करम की बातें ।

हाथ सेंक लय,
पाँव सेंक लय,
पाछें पींठ जुड़ानी ।
लौट किसा फिर
मईं खों आ गई
जाँ खों बै रव पानी ।

दारू पी कें
आ गव कलुआ
पर गईं दो-दो लातें ।

बड़ी पौर में
बिछौ डोरिया
कमरा ओड़ें बैठे ।
बड्डा आ गय,
कक्कू आ गय,
आ गय लुहरे,जेठे ।

चिलम,तमाखू,
चाय गुरीरी
बटन लगीं सौगातें ।

ओस टबक रई
पपरी जम गई
जूड़े नदिया,नरवा ।
ख्वार कुकर गई
कड़े बायरे
जूड़े हो गय फरवा ।

पाँव कुकेरे
औंदे पर रय
तकिया धरकें छातें ।

हमखों लगें
गुरीरीं भौतऊ
जे जाड़े की रातें ।
०००
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।

Language: Hindi
Tag: गीत
6 Likes · 14 Comments · 430 Views
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