जेह् न में कैद किया तुझको तज़क्कुर करके
ग़ज़ल – (बह्र-रमल मुसम्मन मख़्बून महज़ूफ)
ज़ेह्न में कैद किया तुझको तज़क्कुर* करके।(स्मरण)
अब तो कर लेता हूँ दीदार तसव्वुर* करके।।(कल्पना)
जिंदगी रब ने अता की है मुहब्बत के लिए।
यूं न बरबाद इसे कर तू तनफ्फुर* करके।।(नफ़रत )
मैने तो फ़र्ज निभाया है समझकर अपना।
तू न बेग़ाना बना मुझको तश्क्कुर* करके।।(आभार)
अपने बंदो की वो फरयाद सुना करता है।
तू ख़ुदा से तो ज़रा माँग तअव्वुर* करके।।(याचना)
जीत लेते जो एज़ाइम* से समंदर भी “अनीस”।(दृढ़ इरादे)
डूब जाते हैं किनारों पे तकब्बुर* करके।।(घमंड)
– © अनीस शाह “अनीस”