जेब में सरकार लिए फिरते हैं
लोग जुबां पे इश्क और हाथ में प्यार लिए फिरते हैं
चुरा के गुलाब कहते हैं हम गुलज़ार लिए फिरते हैं
हैरान हूं बहुत देखकर ये फितरत जहां में लोगों की
जिससे भी करो बात जेब में सरकार लिए फिरते हैं
छोड़कर मां-बाप को खुद शहर के हैं जो हो चुके
अपनों के ख्वाब तोड़ वे मोटर कार लिए फिरते हैं
जिससे भी करो बात…………
इंसानियत को छोड़कर लोग बंट गए सब धर्मों में
मंदिर-मस्जिद की आड़ में व्यापार किए फिरते हैं
जिससे भी करो बात…………
नहीं सुधरा भाग्य गरीबों का सरकार चाहे जो बनी
जहां मिल जाए रोजी इनको घर-बार लिए फिरते हैं
जिससे भी करो बात…………
“विनोद” क्या-क्या हो रहा है छोड़ दे इस फ़िक्र को
जैसे भी हैं सब अपना-अपना संसार लिए फिरते हैं
जिससे भी करो बात ………..