जूते की चोरी
मित्रों कैसे मैं कहूँ, बीती कैसे शाम।
सखा मिलन की आस में,पहुँचा सेमरा धाम।।
पहुँचा सेमरा धाम, सुना केवट की भक्ति।
धरिए प्रभु का ध्यान, मिलेगी अद्भुत शक्ति।।
फिर इक हुआ कमाल, मित्र ज्यों बाहर आया।
दिखा न जूता द्वार,जटा मन ही मुस्काया।।
बस कुछ क्षण के बाद,भाई अजय जी बोले।
नही है मेरा सूज, यहाँ से कैसे डोले।।
थे हम सबके बाद,बचे थे दो ही जूते।
पहन लिए निज माप,चलें इसके बलबूते
आते बाहर भाय, मिले इक ज्ञानी भाई।
कहे हमें समझाय,यही महिमा रघुराई।।
था जूते में दोष, तभी है दूजा पहने।
मुक्त हुए अब आप, न समझें उसको गहने।।
भूला सकूँ न बात, यही मेरी कमजोरी।
ऐसे भी हैं लोग, करें जूते की चोरी।।
✍️जटाशंकर”जटा”