जुस्तज़ू के किनारे
मेरी ‘जुस्तज़ू’ के हासिल,
बस दो किनारे हैं,
मै जो इस तरफ हूँ,
तो तू उस किनारे है….
मेरे साथ गठरियाँ हैं,
बेनाम ख्वाहिशों की,
तेरे पास मेरी उन,
उम्मीदों के सहारे हैं….
बड़े हमदम बहुत हमराह,
तेरे पास भी मेरे पास भी,
कोई ‘कशिश’ फिर भी है,
हम जिसके मारे हैं…
वक्त ने बदल दिये,
बहुत पैमाने सोच के
‘दिल’ मानता नहीं है,
हम उससे हारे है…
बहुत कुछ पा कर भी,
तेरी ओर देखता हूँ मैं,
ना जाने तेरे पास क्या है,
वो जो उस ‘किनारे’ है…
©विवेक ‘वारिद’ *