जुल्फों का शामियाना
वह था, सावन था, मौसम सुहाना था
सर पर सिर्फ जुल्फों का शामियाना था
नजदीक आना सिर्फ इक बहाना था
उसका मेरी ही जानिब निशाना था
आइना भी यह देखकर हैरान है
इस चेहरे पर हंसी का ज़माना था
वह समझ रहा था कि में हार गया हू
हार कर मुझे एक रिश्ता बचाना था
आखिर मैंने भी क्यों चुनी राहे वफा
आगे में, पीछे सारा ज़माना था
चेहरा तो खूब चमक रहा है मगर
पहले दिल के दागों को मिटाना था
हकीकत पसंद यह ज़माना नहीं है
चेहरे पर चेहरा इक लगाना था
© अरशद रसूल