जुनून-ए-इश्क़
ग़ज़ल
बह्र-रजज मुसम्मन सालिम
वज़्न-2212 2212 2212 2212
मेरे जुनूने इश्क ने,हमको तो बेकल कर दिया ।
तीरे-नज़र ने आपके, लगता है घायल कर दिया।।
नजरें उठाना और झुकाना,ऐ हया है या अदा।
तेरे हुनर के करतबों ने, मुझको कायल कर दिया।।
यूँ खोल कर लहराए गेसू,है हवा में आपने।
मैं अब भटकता फिर रहा, आवारा बादल कर दिया
तेरे बिना अफ़साना मेरा था अधूरी दास्तां।
इकरार ने तेरे मुझे अब तो मुकम्मल कर दिया।।
अब दाद देते हैं वही, कहते थे बेसुर है ‘अनीश”।
तेरी खनकती चूड़ियों ने, मुझको पायल कर दिया।।