जुदा हो मीर से रोयी गजल ।
” गजल ”
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जुदा हो मीर से रोयी गजल ।
न तब से आज तक सोयी गजल।
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खुदा से भी पूछा आखिर कोई
तो बताए कहाँ खोयी गजल।
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किस्मत में मुस्कुराने को मिली थी
पर दर्द के सैलाब में डुबोयी गजल।
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गुलशन गुलशन बन शबनम गम
बयां करते करते खूब भिगोयी गजल ।
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शायरों के मुशायरा में बन अल्फाज
गमों की तस्वीर को संजोयी गजल।
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आशिक के इश्क में हो घायल बनके
गीत आंसू में गम को खूब धोयी गजल।
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ए मालिक मिला दे एक बार उससे
फिर पूछूँ दर्द में क्यूं बोयी गजल।
@पूनम झा। कोटा,राजस्थान