जुदाई
खरगोश सी मुलायम, निर्दोष
पर तेज भागती जिंदगी
ठहर ही जाती वहीं ,
जहाँ जुदा जोड़ी कदम की हो गई थी
कि नादान सी उम्मीद जानें क्यों जिंदा रही थी!
वही दर, वही ठौर और ठिकाने हैं
छोटी सी जिंदगी है, बड़े फासले मिटाने है ।
मुखौटों के साथ चेहरे पर चेहरे हैं
हर जवाब पर एक सवाल हमें घेरे है।
परत दर परत लिबास रिश्तों का उतर रहा है
अरसे बाद तुम्हारे चश्मे से मंजर संवर रहा है।
परेशानी तुम्हारी नज़र की, आज समझ आई है हमें
जब मीठे उलाहनों में तानों की भनक आई है हमें।
समझ ही लेता मेरी सब परेशानी जो हर कोई
तो तुम हो नहीं मेरे पास, ये एहसास होता ही नहीं।
रब ने इन बीते लम्हों में सिखाया है यही,
दुनिया में तुम खुद ही हो अपने, कोई और नहीं।
हां, तुम्हारे जाने से एक अहसास अब तक सोया हुआ है,
गिर भी न सका वो आंसू कोर पर ठहरा हुआ है।
क्या बोलें, किसी को सफाई अब दी नहीं जाती,
थक गए हैं ये नयन, अब जुदाई सही नहीं जाती।
………© डॉ० सीमा