जुते की पुकार
जुते की पुकार
दबे कुचले असहाय,दीन हीन न समझो मुझे।
हाथ जोड़ करता हूं विनती, मेरा महिमा जनजन में गुंजे।।
अंहकार में मतवाला होकर,
पैरों में मुझे दबाते हो।
पहुंच जाते मंजिल फिर , बाहर में मुझे बिठाते हो।।
आदर भाव से तुम्हें देख कर, सम्मान तेरा कराता हूं।
मैं टुट गया दिल से अगर,
तुरन्त शान गिराता हूं।।
मैं हूं चरण सेवक आपका,
विनम्र भाव से रहता हूं।
पद गरिमा का कर ख्याल,तेरा अत्याचार सहता हूं।।
मेरे दम पर मानव, बेझिझक आते जाते हो।
यदि किया गलती भारी तो,
जुते का मार खाते हो।
हाथ जोड़ कर करता हूं विनती,
मेरा भी दम भर दो।
करो हिफाजत मेरा भी,मेरा भी कुछ इज्ज़त कर दो।।