जुगाड़
हास्य
जुगाड़
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कल मौसम बहुत खराब था
आंधी तूफान वारिश अपने पूरे शबाब पर था
मैं अपने कमरे में चुपचाप चिंतन कर रहा था
खेत में तैयार खड़ी फसल की बरबादी के
बाद की स्थिति का आंकलन कर था।
तभी मोबाइल की घंटी बजी
मेरे चिंतन की श्रृंखला टूटी
मैं फोन उठाया और झल्लाया
कौन? इस मौसम में भी चैन नहीं है
उधर से आवाज आई
प्रभु नाराज मत हो
बस थोड़ा सा जुगाड़ कर दो,
मैं झुंझलाया पहले अपना इतिहास बताओ
फिर काम की बात करो।
उत्तर मिला-प्रभु मैं यमराज हूं
मेरी समस्या विकराल है
कैसे भी कुछ जुगाड़ कर दो
बस मेरा वाहन भी बदलवा दो
भैंसे की जगह नया वाहन दिला दो।
मगर मैं इसमें क्या कर सकता हूं?
तुम्हारा वाहन तुम्हारी समस्या
तुम जानो तुम्हारा काम जाने
मुझे क्यों टेंशन दे रहो हो।
यमराज गिड़गिड़ाया
ऐसा कहकर निराश न करो प्रभु
कुछ जुगाड़ कर दो, तनिक एहसान कर दो
मैं जानता हूं धरती पर जुगाड़ से
सबकुछ हो जाता है
जिंदा को मुर्दा और मुर्दे को जिन्दा बता दिया जाता है।
मैंने सोचा क्या करुं
फिर मैंने यमराज को आश्वस्त किया
जुगाड़ का पूरा भरोसा दिया
बदले में सिर्फ पांच लाख का डिमांड
और हफ्ते भर का समय दिया।
यमराज की जैसे मुराद पूरी हो गई
जुगाड़ की रकम मेरे खाते में आ गई
यमराज की सवारी लेटेस्ट माडल
लक्जरी कार हो गई।
यमराज का जुगाड़ से काम हो गया
मेरा भी एक बार फिर से कल्याण हो गया,
पांच लाख अपने बाप का हो गया
मेरे जुगाड़ का ऊपर भी प्रचार हो गया।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित