जुगनू
जुगनू जगकर रात भर, क्या करता हैं खोज।
खुद ही खो जाता सुबह, क्रम चलता हर रोज।। १
भरी दुखों से जिन्दगी, नहीं अँधेरा साथ।
मैं जुगनू हूँ रोशनी, रखता अपने हाथ।। २
लौ लहका कर उड़ रही, जुगनू एक जमात।
उड़े पवन चिन्गारियाँ, धने अँधेरी रात।। ३
लालटेन लेकर चला, जुगनू की बारात।
ढूँढ सके पथ को पथिक, गहन रात बरसात।। ४
जगमग जीती जागती, जलते जीवित जोत।
जंगल जगमग जोत से,जला जीव खद्योत।। ५
जो जग को जगमग करे,जला स्वयं की जोत।
जंगल जगमग जोत से, जला जीव खद्योत।। ६
जगमग हीरे-सा जड़े, एक फबीले माल।
जुगनू कहलाता तभी,है गुदड़ी का लाल।। ७
जाने किस से है जलन, क्यों जलता बेचैन।
जले जुगनुओं के जिगर, जलकर जागे रैन।। ८
जीव दीप्ति जुगनू जला,ऊर्जित उज्ज्वल रेख।
भूले-भटके जब पथिक, ढूंढ सके पथ लेख।। ९
-लक्ष्मी सिंह