जुगनू सी
अंधेरों से कोई नाता है क्या तुम्हारा
कि जब भी बिलजी गुल होती है
तुम खींचें मेरे ओर चली आती हो
फ़िर मेरे आंखों से तुम दिखती हो
तभी मैं कहीं टकराता नहीं
वर्ना अपने गलियों में रोज ठोकर खाता हूं
तुम्हारे वो दिए तोहफे जुगुनू से कम ना है
देखो ना , वहां सब लैंप लिए खड़े हैं
और मैं अंधेरे में सब देख रहा हूं
तुम मेरी जादू की परी हों और इश्क
सच कहा ना , यहीं अपना नाता है न
उस बारिश के बूंदों जैसी , बिल्कुल शुद्ध
जैसे पिता जी दिन में हमारे लिए काम करते हैं
वैसे शायद तुम रौशनी में काम करतीं हो
तभी तुम अंधेरों में हमसे मिलने आतीं हो
पुतुल कुमारी