जी रही हूँ
#दिनांक :- 5/11/2023
#शीर्षक:-जी रही हूँ
ओह हाय !
बहुत व्यस्त हो गए हो तुम अब तो ,
हाँ जिन्दगी में खुशहाल जो हो ,
बीबी, बच्चे,
बहुत सुंदर परिवार बन गया तुम्हारा तो,
अब क्यूँ भला मैं याद आऊँ तुमको ।
तुम गए तो सही पर गये नहीं क्यूँ ?
मुझमे अधूरा रह गए हो क्यूँ ?
जानती हूँ तुम बिना सोचे,
बिना याद किये सो जाते हो ,
पर मेरी आँखे सोती ही नहीं क्पूँ ?
ये कमाल है तेरे इश्क का या दस्तूर है बता दो,
दिल तोड़ने का वजह बता दो,
थोड़ा ही सही अपने आप को तो ले जाते,
याद से बार-बार क्यूँ हो सताते ,
बहुत घुटन, बहुत चुभती दर्द है ,
बिन दवा का ये मर्ज है,
रात का कालापन भयभीत करता ,
सोचती हूँ ये रात ही क्यूँ आता,
अकेली तन्हाई के साथ घुटघुटकर जी रही हूँ ,
तुम्हारे प्यार में दिवालियापन का,
बोझ लिये फिर रही हूँ ।
समस्या ये नहीं कि तुम जान जाओगे,
कोई तुम तक ये संदेश पहुंचा दे,
इस उम्मीद पर जी रही हूँ |
रचना मौलिक, अप्रकाशित, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई