जी भर फले फलते रहे – ग़ज़ल
हम बस चले चलते रहे.
जो भी जले जलते रहे.
बस प्रेम का ही रंग था,
सब पर मले मलते रहे.
हक में हमारे फैसले,
हर दिन टले टलते रहे.
सबको दिखाया आइना,
जिसको खले खलते रहे.
छोड़ा न फलना आम ने,
पत्थर घले घलते रहे.
कुछ भी बदल पाया नहीं,
बस मत डले डलते रहे.
अच्छे दिनों के उम्र भर,
सपने पले पलते रहे.
नकली भले थे नोट थे,
फिर भी चले चलते रहे.
पौधे लगाए प्रेम के,
जी भर फले फलते रहे.