जी करता है …
जी करता है –
रूप संवारूँ
तोड़ बेड़ियाँँ
पंख पसारूँ ;
गाऊँ प्रणय के गीत ,
संग प्रियतम के खेलूँ ,
उगते सूरज की स्वर्ण किरण –
आँँचल में ले लूँ ।
जी करता है –
मन की मरु भूमि पर ,
सरिता-सी बहती जाऊँ ;
बिसरा कर बीती बातें
दर्द भरी सौगातें –
पंछी बन चहकूँ ,
बेला बन महकूँ ,
भाग्य पर अपने इतराऊँ
भाग्य पर अपने इतराऊँ …।
(मोहिनी तिवारी)