जीव ईश्वर से
ईश्वर स्निग्ध मुस्कान लिए
अपने आप में रहते हैं।
जीव रोना लिए अपने
चित्त में विचरते हैं।
जीव भोगी नित रोगी बन जीवन खोते हैं।
ईश्वर स्त्रष्टा – द्रष्टा ,निर्गुण, निरपेक्ष सर्वत्र बन हमे ( जीव ) सम्हालते हैं।
_ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार ( भागलपुर ) दिनांक-31-12-021की स्वरचित रचना हैं जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।