जीवन!
जीवन लगता है जी, वन सा
रास्तों का कोई ठौर नहीं
आये थे एक दम अकेले
अंत में साथ जाएगा
ऐसा भी दिखता कहीं कोई और नहीं
ऐ, जी , वन में जीवन है
हरियाली संग सुगंधित कुसुम हैं
ठंडी सुवासित बयार है
पर किस दरख्त कीे ओट से
या फिर पार्श्व से
कौन सा जानवर चोट दे!
यहाँ पग पग पर खतरे भी हैं
चहचहाते सुंदर पंछी
और केवल मदमस्त नाचते मोर नहीं
इस वन में सजग अनवरत
चलते रहना ही जीवन है
ये कोई ठहरा हुआ दौर नहीं
राह में मिली हर नेमत
सहर्ष स्वीकार है हमें
पर ऐ,जी, हम जानते हैं
जीवन के वन में
अंतिम पथ पर सब अकेले हैं
संग कोई और नहीं
सच है कोई और नहीं!
अपर्णा थपलियाल”रानू”
२७.१२.२०१७