जीवन
बीते कल को कस के है पकड़े
आने वाले कल के भय में है जकड़े
इस पकड़ा पकड़ी में आज रहा निकल
कण कण मुट्ठी से जीवन रहा फिसल
मुट्ठी को भींच ले आज को तू सींच ले
जीवन नभ पर आस वितान तू खींच ले
कल और कल मिले हैं क्या कहीं
एक बीत गया एक आया नहीं
इसका दुख उसकी चिंता छोड़
अपनी कहानी को दे एक नया मोड़
आयेंगे सफ़र में बीते पलों के जंगल
ढूँढ लेना रास्ता ले हौसलों के संबल
न उम्मीद न सफ़र का करना अंत
पतझर के बाद ही आता बसंत
तपने के बाद ही सोना निखरता
घिस कर ही मेहंदी का रंग चढ़ता
फूटता अंकुर मिट्टी में ही दब कर
खिलता गुलाब काँटों में पल कर
तू भी तप घिस झर फूट उग खिल
अंधेरे का हाथ पकड़ रौशनी से मिल
जीवन समंदर खाले गोते पाले मोती
खड़े किनारे ज़िंदगी नहीं जी जाती
ऊँची नीची तिरछी रेखा ही जीवन है
सीधी लकीर तो मृत्यु का अंकन है
रेखांकन।रेखा