जीवन
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जिंदगी की पर्यायवाचिक परिभाषा नर्क है।
मृत्यु नर्क से मुक्ति पथ का व्यवसायिक पहल।
जीने में जद्दोजहद असामान्य है,
सभ्यता और संस्कृति भी होता रहा अमान्य है।
जीते रहने ने पाप और पुण्य को बहस में उलझा दिया।
संदिग्ध आचार ने व्यावहारिकता को जीने बुला लिया।
जीवन सामाजिक,वैयक्तिक चरित्र को करता रहा है दूषित।
शासन,शोषण,संभावित अत्याचार को ठहराता उचित।
कहते हैं मृत्यु स्वर्गारोहण।
संदर्भ मनुष्य का है,नारायण।
इसके इतर जीवन एक खेल है।
मृत्यु और जन्म का अमरबेल है।
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अरुण कुमार प्रसाद 25/12/22