जीवन
कहीं पे खुशी मिले कहीं पे मिलेगा गम
हम तो इसी को समझते हैं जीवन
एक जैसा ना रहेगा कोई भी हरदम
ऐसा ही होता है अपना ये जीवन
कहीं पे खुशी मिले कहीं पे मिलेगा गम
हम तो इसी को समझते हैं जीवन
यहीं पे हैं जन्मे यहीं पे मरेंगे
इन दोनों के बीच को कुछ तो कहेंगे
इसी बीच में यारों करने है सब करम
यारों इसी को कहते हैं जीवन
कहीं पे खुशी मिले कहीं पे मिलेगा गम
हम तो इसी को समझते हैं जीवन
रिश्ते औ नाते सब हमें है निभाने
हमको है यहाँ पे खुशी के गीत गाने
हमको यहाँ पे कुछ करके जाना है
हमको ये जीवन यूँ नहीं गँवाना है
इक बार ही यारों मिलता है जीवन
तो फिर व्यर्थ क्यों करेंगे इसे हम
कहीं पे खुशी मिले कहीं पे मिलेगा गम
हम तो इसी को समझते हैं जीवन
यहाँ पे हैं कब और कब ना रहेंगे
इसका पता तो किसी को नहीं है
इसीलिए अपना काम करते रहें हम
समय को कभी भी व्यर्थ ना करें हम
पता नहीं कब छिन जाएगा जीवन
तो फिर क्यों टाइम पास करेंगे हम
कहीं पे खुशी और कहीं पे मिलेगा गम
बालेन्दु इसी को समझते हैं जीवन
|| लेखक : यशवर्धन राज (बालेन्दु मिश्रा) ||
| हिन्दी प्रतिष्ठा, स्नातक प्रथम सत्र, कला संकाय |
|| काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ||