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5 Jan 2022 · 1 min read

जीवन

जीवन कितना भी खारा है।
सहर्ष इसको स्वीकारा है।

हँसते हँसते इस जीवन में,
हर दुख से किया किनारा है।

प्रात काल की सूर्य किरण बन,
गम के बादल को फारा है।

अपनी ताकत के दम पर ही,
तम में भी किया गुजारा है।

जिसको सब ही रब कहते हैं,
वो देता रहा सहारा है।

लेकिन दुख के बाद हमें नित,
नव अनुभव मिला दुबारा है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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