जीवन
जीवन की महफिल में
इधर -उधर भटक रहे,
करते सदा जीने का अभिनय
जरा हकीकत में जी कर रहे,
भागदौड़ की आपाधापी में
सुंदर- सुखद पलों को गवां रहे,
भौतिक,तृष्णा,लालसा के पीछे
मन के हर तल को थका रहे,
मोह-माया से लिपटे रिश्तों को
लोकलाज,स्वार्थ वश निभा रहे,
नक़ली हंसी वाले चेहरे दिखाई
अंतर्मन के गमों को छुपा रहे,
आओ दो पल बैठ संतोषी छांव में
खामोश गीतों जी भर सुनते रहे,
भटक रहा मन तन इधर -उधर
उसको थोड़ा सुस्ताने को कहें,
निज सुंदर मानव मनमंदिर में,
खुशियों की घंटी बजती ही रहे।।
-सीमा गुप्ता
अलवर,राजस्थान
स्वरचित रचना ✍️?