जीवन
जीवन नही कही सरल है ।
चलना ही जिसका हल है ।
घटता कुछ व्योम अंतरिक्ष में भी,
सागर तल में भी होती हलचल है ।
घूम रही है ,वसुंधरा धूरी पर ,
परिपथ में,जाने कैसा बल है ।
आई रजनी दिनकर के जाते ही,
चंदा सँग तारों की झिलमिल है ।
नव प्रभात की ,आशा में ,
रजनी से भी, होता छल है ।
बदल रहे है दिन, दिन से ही ,
यूँ होता, हर दिन का कल है ।
जीवन नही कही सरल है ।
चलना ही जिसका हल है ।
…..”निश्चल”@…