जीवन
जब कभी लगने लगे की अब पैर भटकने को है
न कोई अपना है
न ही कोई बंधु – सखा
उस वक़्त खुद को सशक्त रखना
तिनके की तूफ़ान से लड़ाई जितना है
पर फ़िर भी हौंसला कुछ यूँ रखना के –
भेजा है तुम्हे यहाँ उपरवाले ने
बुलाने का अधिकार भी पूरा उसका ही
जब तक वो न बुलाये तुम्हे उस ओर
पग धरने का भी अधिकार नहीं ,
माना की अपना कोई नहीं
फिर भी कोशिश कर डालो
इस तिमिर को अंदर तक ख़तम कर डालो
कहना लगता है आसान पर फिर भी ये आसान नहीं
पर तू ही उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति है
राह निकल आएगी –
कुछ दिन रो ले
कुछ दिन चिल्ला ले
कुछ दिन ऐसे मलंग पड़ा रह ,
दिल को बार बार कोशिश कर ज़िंदा करने की
ये समय बड़ा बलवान है ये सब धूमिल कर देगा
बस तू किसी तरह से इस समय का भुगतान कर ,
फिर तू खिल उठेगा …
ये जीवन देन विधाता की
नाम लिए जा उसका ये कंटक पथ ख़तम हो जायेगा
मस्त हवाओं के झोंको सा तू फिर एक दिन बहता जायेगा
तू फिर एक दिन बहता जायेगा |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’