जीवन-
हम जी लिए जीवन,
बिन समाज को राह दिखाये|
अब बच्चे कैसे जियेंगे,
उस समाज में, जिसको
हमने विकृत बनाये|
नन्ही कली, नन्हां मुन्ना|
देख समाज को घबराये|
हम कैसे जियें समाज में,
तेरे जिसके स्वरुप बस
भरमाये|
हम तो मन को किये मधुबन,
चलते रहे लिए तन मन,
पर बच्चे कटूक्तियां कैसे सहेगे?
यह सोच सोच मन घबराये|
डा पूनम श्रीवास्तव( वाणी)