जीवन
विश्वाश की कतरने, बिखरी है इधर उधर।
कपोल पर कुछ बूँदे अश्रु, लुढके है इधर उधर।।
जागीर रिस्तों की न जाने क्यू सलामत नही रह पाती,
कुछ खयालातो के दफीने बिखरे है इधर उधर।।
आहत मन,बैचैन खयाल,और जकड़ी हुई स्वासेँ,
अन्तर्द्वन्द के बादल , घिर के आये है इधर उधर।।
लालच ही अब नींव है, हर रिस्ते में तरकीब है,
अच्छाइयों के टुकडे बिखरे है इधर उधर।।
दंभ में है मानव,फरेब के मुखौटे है,
जिन्दगी की चाहतो के किस्से फैले है इधर उधर।।
बस यूं ही बेबस होके जिए जा रहे है,
किताब ए जिन्दगी के पन्ने उडते है इधर उधर ।।